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    चीन-भारत सीमा के सिक्किम भाग पर भारतीय सीमावर्ती सेना के चीनी प्रादेशिक भूमि में प्रवेश का तथ्य और चीन का रुख
    2017-08-02 19:49:28 cri

    ( भाग एक )

    1. तूंगलांग क्षेत्र चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की यातूंग काउंटी में स्थित है जो पश्चिम में भारत के सिक्किम प्रदेश और दक्षिण में भूटान से जुड़ती है । सन 1890 में चीन और ब्रिटेन के बीच संपन्न "भारत व तिब्बत के बीच सीमा सवाल पर संधि" में चीन के तहत तिब्बत क्षेत्र तथा सिक्किम के बीच सीमा को रेखांकित किया गया था । इस संधि के मुताबिक तूंगलांग क्षेत्र सीमा रेखा के चीनी पक्ष में होता है और जो कि अखंडनीय चीनी प्रादेशिक भूमि है । चीनी सीमावर्ती सेना और चरवाहे हमेशा से इस क्षेत्र में गश्ती और पशुपालन की गतिविधि करते रहे हैं । वर्तमान में तूंगलांग क्षेत्र और सिक्किम के बीच सीमा, चीन-भारत सीमा के सिक्किम भाग का एक भाग माना जाता है ।

    2. 16 जून 2017 को चीनी पक्ष ने तूंगलांग क्षेत्र में मार्ग का निर्माण किया । 18 जून को भारतीय सीमावर्ती सेना के 270 सैनिकों ने हथियार व दो बुलडोज़र लेकर डोकाला (Dokala) दर्रे से सौ मीटर दूर पारकर चीन के निर्माण को रोका और दोनों पक्षों के बीच तनाव जन्म दिया । सबसे ज्यादा के समय सीमा को पार करने वाले भारतीय सैनिकों की संख्या 400 तक जा पहुंची । उन्होंने दो बुलडोज़र और तीन टेंट लेकर सीमा से 180 मीटर तक प्रवेश किया । जुलाई महीने के अंत तक ही 40 से अधिक भारतीय सैनिक एक बुलडोज़र लेकर चीन की प्रादेशिक भूमि में गैरकानूनी ढंग से ठहरे ।

    3. घटना के बाद चीनी सीमावर्ती सेना ने घटना स्थल पर आपातकालीन कदम उठाया । 19 जून को चीन ने राजनयिक माध्यम से भारत के समक्ष गंभीरता से मामला उठाया, भारतीय पक्ष के गैरकानूनी प्रवेश के खिलाफ जबरदस्त विरोध और निन्दा प्रकट की और भारतीय पक्ष से तुरंत ही अपने सैनिकों को सीमा की भारतीय पक्ष तक वापस बुलाने की मांग की । चीनी विदेश मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय और भारत स्थित चीनी दूतावास ने पेइचिंग और नई दिल्ली में क्रमशः अनेक बार भारत को गंभीरता से मामला उठाया और भारत से चीन की प्रभुसत्ता का समादर करने तथा तुरंत ही अपने सैनिकों को वापस बुलाने की मांग की । चीनी विदेश मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ताओं ने अनेक बार तथ्यों की जानकारी देने के लिए व्याख्यान किया और भारतीय सेना के प्रवेश के मैप और फोटो जारी किये।

    (भाग दो )

    4. चीन और भारत के बीच सीमा का सिक्किम भाग सन 1890 चीन और ब्रिटेन के बीच संपन्न"भारत व तिब्बत के बीच सीमा सवाल पर संधि"में रेखांकित किया गया था । इस संधि के अध्याय एक में इस सीमा की साफ दिशा निर्धारित की गयी थी । सीमा की रेखा पहाड़ के वाटरशेड से चलती है और रेखाओं की दिशाएं बहुत साफ हैं ।

    5. नये चीन की स्थापना और भारत की स्वाधीनता के बाद दोनों देशों की सरकार ने सन 1890 में संपन्न उस संधि और इससे निर्धारित चीन-भारत सीमा के सिक्किम भाग की तय सीमा का उत्तराधिकार किया । भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा चीन के प्रधानमंत्री चो एन लाई के समक्ष लिखित पत्र, चीन स्थित भारतीय दूतावास द्वारा चीनी विदेश मंत्रालय के समक्ष भेजे गये व्याख्या, और चीन-भारत सीमा मुद्दा विशेष प्रतिनिधि बैठक में भारतीय पक्ष द्वारा प्रस्तुत की गयी दस्तावेज़ों में उक्त अंक दर्शाये गये हैं ( एनेक्स देखें ) । चीन और भारत दोनों देशों ने दीर्घकाल के लिए सन 1890 संधि में निर्धारित सीमा रेखा के मुताबिक अपना अपना शासन किया और दोनों ने सीमा रेखा की दिशा के प्रति मतभेद नहीं प्रकट किया । संधि के जरिये निश्चित की गयी सीमा की अंतरराष्ट्रीय कानून के द्वारा विशेष रक्षा की जाती है और इस सीमा का अतिक्रमण नहीं किया जा सकता है ।

    6. यह अखंडनीय तथ्य है कि 18 जून से भारत की सीमावर्ती सेना ने गैर-कानूनी तौर पर चीन-भारत सीमा के सिक्किम भाग को पार कर चीनी प्रादेशिक भूमि में प्रवेश किया है । यह घटना दोनों देशों के बीच सीमा के निश्चित भाग पर घटित हुई जो गैर-रेखांकित क्षेत्रों में दोनों की सेनाओं के बीच हुए टकराव से पूर्ण रूप से अलग है । भारत की सीमावर्ती सेना ने निश्चित सीमा को पार कर चीन की प्रभुसत्ता और प्रादेशिक अखंडता का अतिक्रमण किया जिससे सन 1890 संधि और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन किया गया है । और जिससे अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी सिद्धांतों को बर्बरता से रौंदा गया है । यह एक अत्यंत गंभीर घटना है ।

    ( भाग तीन )

    7. घटना के बाद भारत ने कई बहाने बनाकर अपनी गैर-कानूनी कार्यवाही के लिए बहस की । लेकिन भारत का जो कथन है वे तथ्यों और वैधता का उल्लंघन किये जा रहे हैं और बिल्कुल निराधार हैं ।

    8. चीन-भारत सीमा का सिक्किम भाग तय हो चुका है और तूंगलांग क्षेत्र चीन की प्रादेशिक भूमि ही है । चीन द्वारा अपनी प्रादेशिक भूमि में जो निर्माण किया गया है, उसका उद्देश्य इस क्षेत्र की यातायात में सुधार करना है और वह बिल्कुल वैध ही है । चीन का मार्ग निर्माण सीमा रेखा से पार नहीं हुआ और चीन ने निर्माण से पहले ही भारत को सूचित कर अपना सद्भावना दर्शाया है । लेकिन भारत की सीमार्वती सेना ने खुले तौर पर दोनों पक्षों की मान्यता प्राप्त सीमा को पार कर चीन की प्रादेशिक भूमि का अतिक्रमण किया और चीन की प्रभुतत्ता का आक्रमण किया । भारत की कार्यवाही से सीमा की मौजूदा स्थितियों को तोड़ा गया है और चीन व भारत के सीमांत क्षेत्रों की शांति को गंभीरता से नष्ट किया गया है ।

    9. भारत ने चीन के मार्ग निर्माण से गंभीर सुरक्षा खतरा पैदा करने के बहाने पर अपनी गैर-कानूनी कार्यवाही के लिए बहस की । पर सन 1974 की 14 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में पारित नम्बर 3314 प्रस्ताव में यह निर्धारित है कि राजनीतिक, आर्थिक, सैनिक या दूसरे किसी भी कारण को एक देश की सेना की दूसरे देश की प्रादेशिक भूमि में आक्रमण करने वाली कार्यवाही के लिए बहाना नहीं माना जा सकता है । भारत ने तथाकथित सुरक्षात्मक चिन्ता के कारण से तय सीमा को पार कर एक पड़ोसी देश की प्रादेशिक भूमि में प्रवेश किया । उस की किसी भी कार्यवाही से अंतर्राष्ट्रीय कानून और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है जो प्रभुसत्ता प्राप्त किसी भी देश के लिए अस्वीकार्य है । और वह चीन और भारत दो पड़ोसी देशों के बीच साथ-साथ रहने का सामान्य तरीका भी नहीं है ।

    10. एक अरसे से भारतीय सेना ने डोकाला दर्रा और उस के आसपास के क्षेत्र में सीमा रेखा के भारतीय पक्ष में सड़क समेत बड़ी मात्रा वाले बुनियादी संस्थापन निर्मित किये ,यहां तक कि सीमा रेखा पर बंकर जैसा सैन्य ढांचा भी स्थापित किया । इस के विपरीत चीन ने इस क्षेत्र की सीमा रेखा के चीनी पक्ष में बहुत कम बुनियादी संस्थापनों का निर्माण किया । इधर कुछ साल भारतीय सीमा बल ने सीमा रेखा पर चीनी सीमा बल की सामान्य गश्ती की रोकथाम की और सीमा पार कर सैन्य संस्थापन स्थापित करने की कोशिश भी की ।चीनी सीमा बल ने इसे लेकर अनेक बार विरोध जताया और कानून के मुताबिक भारतीय सेना के सीमा पारीय संस्थापन को मिटाया । वास्तव में भारत दवारा निरंतर चीन-भारत सीमा के सिक्किम सेक्टर की स्थिति बदलने की चेष्टा चीन के लिए गंभीर खतरा बन गया ।

    11. वर्ष 1890 में संपन्न संधि में निर्धारित हुआ है कि चीन भारत सीमा का सिक्किम भाग भूटान से लगे जिपमोची पहाड़ से शुरू होता है ,जो चीन भारत सीमा के सिक्किम भाग का पूर्वी छोर है और चीन ,भारत ,भूटान तीन देशों का जुड़ाव भी है । वर्तमान घटना का तीन देशों के जुड़ाव क्षेत्र से संबंध नहीं है । भारत को वर्ष 1890 संधि और इस में निर्धारित चीन भारत सीमा के सिक्किम भाग के पूर्वी छोर का सम्मान करना चाहिए । भारत को एकतरफा तौर पर निर्धारित सीमा रेखा और उस के पूर्वी छोर को बदलने का अधिकार नहीं है । उसे इस बहाने से चीन की प्रभुसत्ता का अतिक्रमण करने का कोई कारण नहीं है ।

    12. अंतरराष्ट्रीय कानून में सीमा की स्थिरता और निश्चितता निर्धारित है ,जिस का उल्लंघन नहीं किया जा सकता । वर्ष 1890 संधि में निर्धारित चीन भारत सेना का सिक्किम भाग हमेशा प्रभावी होता है ,जिस की चीन और भारत ने कई बार पुष्टि की है । किसी भी पक्ष को इस का सख्त पालन करना है और इस का उल्लंघन नहीं करना चाहिए । चीन और भारत सीमा सवाल पर विशेष प्रतिनिधियों की भेंट वार्ता में सीमा के सिक्किम भाग के बारे में सीमा सवाल के समाधान की प्रारंभिक उपलब्धि पूरी करने पर विचार कर रहे हैं । इस का मुख्य कारण इस भाग की सीमा वर्ष 1890 संधि में निर्धारित की गयी है और इस संधि पर तत्कालीन चीन और ब्रिटेन ने हस्ताक्षर किये थे । चीन और भारत को चीन और भारत के नाम पर नये सीमा समझौते पर हस्ताक्षर कर वर्ष 1890 संधि की जगह लेनी चाहिए । लेकिन इस से सिक्किम भाग की सीमा के निर्धारण पर कोई असर नहीं पड़ता है ।

    13. तूंगलांग क्षेत्र शुरू से ही चीन का है और चीन के प्रभावी शासन के अधीन है । इस पर कोई वाद विवाद नहीं है । चीन और भूटान दोनों प्रभुसत्ता संपन्न स्वतंत्र देश है । पिछली सदी के 80 वाले दशक से दोनों देशों ने सीमा सवाल के समाधान के लिए वार्ता शुरू की । अब तक वार्ता के 24 चरण हो चुके हैं और व्यापक समानताएं प्राप्त हुई हैं । औपचारिक रूप से सीमा रेखांकित नहीं करने के बावजूद दोनों पक्षों ने सीमांत क्षेत्र में सुंयक्त पर्यवेक्षण किया और वहां की जमीनी स्थिति और सीमा की दिशा पर बुनियादी मतैक्य संपन्न किये हैं । चीन- भूटान सीमा का सवाल चीन और भूटान के बीच में सवाल ही है, जिस का भारत से संबंध नहीं है । तीसरे पक्ष के नाते भारत को चीन-भूटान सीमा वार्ता में दखलंदाजी करने का अधिकार नहीं है और भूटान के लिए भूमि मांगने का अधिकार भी नहीं है । भूटान के बहाने से भारतीय सेना के चीनी भूमि में घुसपैठ से न सिर्फ चीनी प्रभुसत्ता का उल्लंघन किया गया है, बल्कि भूटान की प्रभुसत्ता और स्वतंत्रता के लिए भी चुनौती पेश की गयी है । चीन और भूटान मैत्रीपूर्ण पड़ोसी हैं । चीन हमेशा से भूटान की प्रभुसत्ता और स्वतंत्रता का सम्मान करता है । दोनों पक्षों की समान कोशिशों से चीन-भूटान सीमा पर शांति और अमन चैन बनी रही है । चीन भूटान के साथ बाहरी हस्तक्षेप के बिना वार्ता से सीमा सवाल का समधान करेगा ।

    ( भाग चार )

    14. घटना आने के बाद चीन पूर्ण सद्भाव में और संयम रखते हुए कूटनीतिक माध्यम से भारत के साथ घटना का समाधान करने का प्रयास कर रहा है। लेकिन किसी भी देश को राष्ट्रीय प्रभुसत्ता और प्रादेशिक अखंडता की हिफाजत करने का चीन सरकार और चीनी जनता का दृढ़ संकल्प कम न आंकना चाहिए। चीन अपनी वैध अधिकारों और हितों की रक्षा करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाएगा। वर्तमान घटना निश्चित सीमा रेखा की चीनी पक्ष में हुई, भारत को शीघ्र ही बिना कोई शर्त अपनी सेना को सीमा रेखा की भारतीय पक्ष में हटाना चाहिए। यह वर्तमान घटना को सुलझाने की पूर्वशर्त और आधार ही है।

    15. चीन और भारत दोनों सबसे बड़े विकासशील देश हैं। चीन सरकार हमेशा से भारत के साथ अच्छे पड़ोसियों जैसे मैत्रीपूर्ण संबंधों के विकास पर ध्यान देती है और सीमांत क्षेत्र में शांति व स्थिरता बनाए रखने में संलग्न रहती है। चीन, भारत सरकार से द्विपक्षीय संबंधों और जन हितों की दृष्टिकोण से वर्ष 1890 में संपन्न संधि और इसमें निर्धारित चीन-भारत निश्चित सीमा का पालन करते हुए शांतिपूर्ण सहअस्तितव के पांच सिद्धांतों समेत अन्तरराष्ट्रीय कानूनों के बुनियादी सिद्धांत और अन्तरराष्ट्रीय संबंध के बुनियादी मापदंड के अनुसार, शीघ्र ही अपनी सेना को वापस हटाने का आग्रह करता है। चीन भारत सरकार से वर्तमान घटना की पूरी तरह जांच करके जल्द से जल्द घटना का उचित समाधान करने का आग्रह करता है, ताकि सीमांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बहाल हो सके। यह दोनों देशों के मूल हितों से मेल खाता है और क्षेत्रीय देशों व अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की समान इच्छा भी है।

     

    Appendix I

    CONVENTION BETWEEN GREAT BRITAIN AND CHINA RELATING TO SIKKIM AND TIBET

    WHEREAS Her Majesty the Queen of the United Kingdom of Great Britain and Ireland, Empress of India, and His Majesty the Emperor of China, are sincerely desirous to maintain and perpetuate the relations of friendship and good understanding which now exist between their respective Empires; and whereas recent occurrences have tended towards a disturbance of the said relations, and it is desirable to clearly define and permanently settle certain matters connected with the boundary between Sikkim and Tibet, Her Britannic Majesty and His Majesty the Emperor of China have resolved to conclude a Convention on this subject, and have, for this purpose, named Plenipotentiaries, that is to say:

    Her Majesty the Queen of Great Britain and Ireland, his Excellency the Most Honourable Henry Charles Keith Petty Fitzmaurice, G.M.S.I., G.C.M.G., G.M.I.E., Marquess of Lansdowne, Viceroy and Governor-General of India;

    And His Majesty the Emperor of China, his Excellency Shêng Tai, Imperial Associate Resident in Tibet, Military Deputy Lieutenant-Governor;

    Who, having met and communicated to each other their full powers, and finding these to be in proper form, have agreed upon the following Convention in eight Articles:

    ARTICLE I.

    The boundary of Sikkim and Tibet shall be the crest of the mountain range separating the waters flowing into the Sikkim Teesta and its affluents from the waters flowing into the Tibetan Mochu and northwards into other Rivers of Tibet. The line commences at Mount Gipmochi on the Bhutan frontier, and follows the above-mentioned water-parting to the point where it meets Nipal territory.

    ARTICLE II.

    It is admitted that the British Government, whose Protectorate over the Sikkim State is hereby recognized, has direct and exclusive control over the internal administration and foreign relations of that State, and except through and with the permission of the British Government, neither the Ruler of the State nor any of its officers shall have official relations of any kind, formal or informal, with any other country.

    ARTICLE III.

    The Government of Great Britain and Ireland and the Government of China engage reciprocally to respect the boundary as defined in Article I, and to prevent acts of aggression from their respective sides of the frontier.

    ARTICLE IV.

    The question of providing increased facilities for trade across the Sikkim-Tibet frontier will hereafter be discussed with a view to a mutually satisfactory arrangement by the High Contracting Powers.

    ARTICLE V.

    The question of pasturage on the Sikkim side of the frontier is reserved for further examination and future adjustment.

    ARTICLE VI.

    The High Contracting Powers reserve for discussion and arrangement the method in which official communications between the British authorities in India and the authorities in Tibet shall be conducted.

    ARTICLE VII.

    Two joint Commissioners shall, within six months from the ratification of this Convention, be appointed, one by the British Government in India, the other by the Chinese Resident in Tibet. The said Commissioners shall meet and discuss the questions which, by the last three preceding Articles, have been reserved.

    ARTICLE VIII.

    The present Convention shall be ratified, and the ratifications shall be exchanged in London as soon as possible after the date of the signature thereof.

    In witness whereof the respective negotiators have signed the same, and affixed thereunto the seals of their arms.

    Done in quadruplicate at Calcutta, this 17th day of March, in the year of our Lord 1890, corresponding with the Chinese date, the 27th day of the 2nd moon of the 16th year of Kuang Hsü.

     

     

    Appendix II

    A. Letter from Indian Prime Minister Jawaharlal Nehru to Chinese Premier Chou En-lai dated 22 March 1959:

    "The boundary of Sikkim, a protectorate of India, with the Tibet Region of China was defined in the Anglo-Chinese Convention 1890 and jointly demarcated on the ground in 1895."

    B. Letter from Indian Prime Minister Jawaharlal Nehru to Chinese Premier Chou En-lai dated 26 September 1959:

    "This Convention of 1890 also defined the boundary between Sikkim and Tibet; and the boundary was later, in 1895, demarcated. There is thus no dispute regarding the boundary of Sikkim with the Tibet region."

    C. Note of the Indian Embassy in China to the Chinese Ministry of

    Foreign Affairs dated 12 February 1960:

    "The Chinese Government are aware of the special treaty relations which the Government of India have with Bhutan and Sikkim. In view of this the Government of India welcome the explanations given in the Chinese note relating to the boundaries between Sikkim and Bhutan on the one hand and Tibet on the other. The note states that the boundary between Sikkim and the Tibet region of China has long been formally delimited, and that there is neither any discrepancy on the maps nor any dispute in practice. The Government of India would like to add that this boundary has also been demarcated on the ground."

    D. Non-paper provided by the Indian side during the Meeting of the Working Teams of the Special Representatives on China-India Boundary Question on 10 May 2006:

    "(e) Both sides agree on the boundary alignment in the Sikkim

    Sector."

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