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    आप की पसंद 161105
    2017-01-20 15:07:07 cri

    पंकज - नमस्कार मित्रों आपके पसंदीदा कार्यक्रम आपकी पसंद में मैं पंकज श्रीवास्तव आप सभी का स्वागत करता हूं, आज के कार्यक्रम में भी हम आपको देने जा रहे हैं कुछ रोचक आश्चर्यजनक और ज्ञानवर्धक जानकारियां, तो आज के आपकी पसंद कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं।

    अंजली – श्रोताओं को अंजली का भी प्यार भरा नमस्कार, श्रोताओं हम आपसे हर सप्ताह मिलते हैं आपसे बातें करते हैं आपको ढेर सारी जानकारियां देते हैं साथ ही हम आपको सुनवाते हैं आपके मन पसंद फिल्मी गाने तो आज का कार्यक्रम शुरु करते हैं और सुनवाते हैं आपको ये गाना जिसके लिये हमें फरमाईश पत्र लिख भेजा है ....धनौरी तेलीवाला, हरिद्वार उत्तराखंड से निसार सलमानी, समीना नाज़, सुहैल बाबू, आयान सलमानी और इनके सभी परिजनों ने, आप सभी ने सुनना चाहा है .छाया (1961) फिल्म का गाना जिसे गाया है लता मंगेशकर और तलत महमूद ने गीतकार हैं राजेन्द्रकृष्ण और संगीत दिया है शलिल चौधरी ने गीत के बोल हैं -----

    सांग नंबर 1. इतना न मुझसे तू प्यार बढ़ा ....

    पंकज - कपड़ा मिल में 60 रु पर करती थी मजदूरी, खड़ी कर दी 750 करोड़ की कंपनी

    कुछ लोग अगर गरीब परिवार में होते हैं तो वे उसे अपनी किस्मत मान लेते हैं औ पूरी जिंदगी गरीबी में ही बिता देते हैं। लेकिन बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो हर तरह की परेशानियों से निकलकर अपनी किस्मत खुद बनाते हैं। वे न सिर्फ अपनी किस्मत बनाते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी मिसाल बन जाते हैं। हम आपको ऐसी ही एक शख्‍स के बारे में बता रहे हैं, जिनका जन्म एक गरीब दलित परिवार में हुआ। कम उम्र में ही शादी हो गई और टूट भी गई। परिवार का पेट भरने के लिए रोज 2 रुपए की दिहाड़ी पर काम करना पड़ा। लेकिन, आज वह अपनी हिम्मत और स्किल से 750 करोड़ की कंपनी की मालकिन बन चुकी हैं।

    हम बात कर रहे हैं कमानी ट्यूब्स की सीईओ कल्पना सरोज की। आइए जानते हैं कि कपड़ा मिल में कभी 2 रुपए रोज की सैलरी पर काम करने वाली कल्पना ने कैसे सफलता की कहानी लिख डाली....

    गरीब परिवार में हुआ था जन्म

    हवलदार के घर में हुआ जन्म

    कल्‍पना सरोज का जन्म 1961 में महाराष्ट्र के अकोला जिले के छोटे से गाँव रोपरखेड़ा के गरीब दलित परिवार में हुआ था। उनके पिता पुलिस हवलदार थे। उन पर अपने अलावा अपने भाई के परिवारी का खर्च भी चलाने की जिम्मेदारी थी। कल्पना के 2 भाई और 3 बहन भी थीं। मुश्किल से परिवार का गुजारा होता था। पैसा नहीं था तो कल्पना को पढ़ने के लिए सरकारी स्कूल भेजा गया।

    अंजली – पिछले कुछ वर्षों में चीन में सबसे ज्यादा करोड़पतियों की संख्या सामने आई है और इसमें सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये भी कल्पना जैसे ही अपनी मेहनत और लगन के ज़रिये ही आगे बढ़ने में कामयाब हुए हैं, साथ ही एक दिलचस्प बात ये भी है कि अपने दम पर बने इन करोड़पतियों में लड़कियों की भी अच्छी खासी तादाद है। किसी भी देश की तरक्की और आर्थिक उन्नति के लिये ज़रूरी है कि वहां के लोग सरकार से नौकरी की आस लगाने के बजाए खुद कुछ ऐसा करें जिससे वो खुद तो आर्थिक रूप से सम्पन्न बने साथ ही कुछ और लोगों को भी रोज़गार दे सकें। मैंने ऐसा सुना है कि भारत में भी मारवाड़ी, गुजराती, सिंधी, सिख और कुछ विशेष समुदाय के लोग हैं जो ऐसे प्रयास करते रहते हैं जिससे वो दूसरे लोगों को भी रोज़गार देते हैं। चलिये श्रोता मित्रों इसी के साथ हम कार्यक्रम का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए उठाते हैं आपका अगला पत्र जिसे हमें लिख भेजा है दौलतबाग मुरादाबाद उत्तरप्रदेश से जाफर हुसैन, मोहम्मद कासिम अली, जुनैद अब्बासी और इनके ढेर सारे मित्रों ने, आप सभी ने सुनना चाहा है मुगल ए आज़म (1961) फिल्म का गाना जिसे गाया है लता मंगेशकर ने गीतकार हैं शकील बंदायुनी और संगीत दिया है नौशाद ने और गीत के बोल हैं ----

    सांग नंबर 2. मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो रे ....

    पंकज - कम उम्र में ही हो गई शादी जब कल्पना जी 12 साल की थीं तभी उनके पिता ने पढ़ाई छुड़वा दी। उस समय वह 7वीं में पढ़ाई कर रही थीं। समाजके दबाव में आकर पिता ने कल्पना की शादी 12 साल की उम्र में ही उनसे बड़े लड़के से कर दी। लेकिन कल्पना के लिए शादी का अनुभव बुरा रहा।। ससुराल में इतना परेशान की गईं कि उन्हें मजबूरन पिता के घर लौटना पड़ा।...

    कपड़ा मिल में 2 रुपए की दिहाड़ी पर शुरू किया काम उन्होंने अपने चाचा के पास मुंबई जाने का फैसला किया। कल्पना के चाचा मुंबई के एक स्लम बस्ती में रहतेथे और पापड़ बेचकर गुजारा करते थे। कल्पना को सिलाई का काम आता था, इसलिए उनके चाचा ने एक कपड़ा मिल में काम दिलाने ले गए। हालांकि हड़बड़ाहट में कल्पनासे सिलाई मशीन नहीं चल पाई। मिल के मालिक ने पहले तो काम देने से मना कर दिया, लेकिन बाद में 2 रुपए रोजाना पर धागा काटने का काम दे दिया।

    यहां से बदली कल्पना की सोच

    सबकुछ ठीक हो रहा था कि तभी एक ऐसी घटना घटी जिसने कल्पना जी को झकझोर कर रख दिया। उनकी बहन बहुत बीमार रहने लगी और इलाज के पैसे न होने के कारण एक दिन उसकी मौत हो गई। तभी कल्पना जी को यह अहसास हुआ कि गरीबी से बुरी कोई चीज नहीं है। उन्होंने ठान लिया कि वह अपनपी गरीबी को किसी तरह खत्म करके रहेंगी।

    अंजली – इंसान अपनी आधी जंग तो हिम्मत के दम पर जीत लेता है। इसी तरह से चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियां हों हमें अपनी हिम्मत नहीं छोड़ना चाहिए। तो चलिये मित्रों अब हम उठाते हैं कार्यक्रम का अगला पत्र जिसे हमें लिख भेजा है हमारे पुराने श्रोता आदर्श श्रीवास रेडियो श्रोता संघ, ग्राम लहंगाबाथा, पोस्ट बेलगहना, ज़िला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ से पारस राम श्रीवास और इनके ढेर सारे मित्रों ने आप सभी ने सुनना चाहा है रेशमा और शेरा (1971) फिल्म का गाना जिसे गाया है लता मंगेशकर ने गीतकार हैं राजेन्द्र कृष्ण और संगीत दिया है जयदेव ने गीत के बोल हैं ....

    सांग नंबर 3. मैं आज पवन में पाऊं ....

    पंकज - ऐसे बनीं कल्पना की पहचान

    कल्पना ने घर में ही कुछ सिलाई मशीनें लगा लीं और 16-16 घंटे काम करने लगीं। कुछ पैसे आए तो उन्होंने बजिनेस बड़ा करने की सोची। लेकिन जब लोने लेने की बारी आई तो पता चला कि इसके लिए भी घूस देने पड़ते हैं। ऐसी समस्याओं से निपटने के लिए उन्होंने कुछ लोगों के साथ मिलकर एक संगठन बनाया जो लोगों को सरकरी योजनाओं के बारे में बताता था और लोन दिलाने में मदद करता था। धीरे-धीरे ये संगठन काफी पॉपुलर हो गया और कल्पना की पहचान भी बनने लगी।शुरू किया फर्नीचर का बिजनेस

    कल्पना ने एक सरकारी योजना के तहत 50 हजार रुपए का कर्ज लिया और 22 साल की उम्र मे फर्नीचर का बिजनेस शुरू किया।

    कल्पना ने बनाए 4.5 करोड़ रुपए

    कल्पना को एक प्लाट 1 लाख रुपए में मिला जिसपर कुछ विवाद था। बाद में विवाद सुलझने के बाद प्लॉट की कीमत 50 लाख रुपए हो गई। कल्पना ने इस पर कंस्ट्रक्शन कराने के लिए एक बिजनेसमैन से पार्टनरशिप कर ली। मुनाफे में 65 फीसदी कल्पना को मिले और उन्होंने 4.5 करोड़ रूपए कमाए।

    संभाली कमानी ट्यूब्स की बागडोर कमानी ट्यूब्स 1985 में विवाद के कारण बंद हो गई थी। बाद में कंपनी का मालिकाना हक वर्कर्स को देकर कंपनी शुरू की गई। वर्कर्स इसेचला नहीं पा रहे थे तो उन्होंने कल्पना से इसके लिए बात की। पहले मना करने के बाद कल्पना इसके बोर्ड में शामिल हुईं। उनके प्रयासों से धीरे धीरे... कंपनी कर्ज से निकलती गई। 2006 में कोर्ट ने उन्हें कमानी इंस्ट्रीज का मालिक बना दिया। कल्पना ने 1 साल में बैंक लोन चुका दिए। कल्पना ने वर्कर्स का बकायाभी 3 माह में चुका दिया। आज उनकी कंपनी एक 750 करोड़ की बन चुकी है। उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें 2013 में पद्म श्री सम्मान भी मिला।

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    अंजली – तो मित्रों पंकज आपको कोई और जानकारी दें उससे पहले मैं आप सभी को कार्यक्रम का अगला गीत सुनवा देती हूं, लेकिन आप सभी से हम ये कहना चाहते हैं कि आप जहां पर भी हैं जो कुछ भी कर रहे हैं, अपने आस पास के माहौल और लोगों की ज़रूरत को देखते हुए आप छोटे स्तर पर ही सही लेकिन कोई खुद का काम ज़रूर शुरु करें, हर बड़े काम की छोटी सी शुरुआत होती है। इसलिये पूरी तरह से रिसर्च करने के बाद कुछ जानकार लोगों से परामर्श लेकर आप हिम्मत से अपना काम शुरु करें आपको सफलता ज़रूर मिलेगी। ये अगला पत्र हमारे पास आया है हरिपुरा झज्जर हरियाणा से प्रदीप वधवा, आशा वधवा, गीतेश वधवा, मोक्ष वधवा और निखिल वधवा का आप सभी ने सुनना चाहा है Bluff Master (1963) फिल्म का गाना जिसे गाया है मोहम्मद रफ़ी और लता मंगेशकर ने गीतकार हैं राजेन्द्र कृष्ण और संगीत दिया है कल्याणजी आनंदजी ने और गीत के बोल हैं ....

    सांग नंबर 4. हुस्न चला कुछ ऐसी चाल .....

    पंकज - कभी साइकिल रिपेयर करता था यह शख्स, आज खड़ी की 2200 करोड़ की कंपनी...

    बिजनेस कोई भी हो, लेकिन अगर आपका आइडिया यूनीक हो तो आपको आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता। छत्तीसगढ़ के रहने वाले इस शख्स ने कुछ ऐसा ही कर... दिखाया। साइकिल की दुकान पर पंचर लगाने वाले इस शख्स ने 100 मुर्गियों के साथ अपना बिजनेस शुरू किया। आज इस शख्स की कंपनी 2200 करोड़ की कंपनी बन चुकी...

    100 मुर्गियों से शुरू किया सफर

    बहादुर अली के पिता की साइकिल रिपेयर करने की दुकान थी। लेकिन पिता के गुजर जाने के बाद बहादुर अली और उनके भाई के कंधोंं पर कम उम्र में ही परिवार की जिम्मेदारी आ गई। फिर दोनों भाई मिलकर उस साइकिल की दुकान को चलाने लगे। वहीं, एक दिन उनकी मुलाकात एक डॉक्टर से हुई, जिन्होंने उन्हें पोल्ट्री बिजनेस के बारे में समझाया। बहादुर अली को आइडिया में दम लगा और 100 मुर्गियों के साथ उन्होंने पोल्ट्री बिजनेस शुरू कर दिया।

    कमजोरी को ही बनाया हथियार

    अंजली – श्रोता मित्रों वक्त हो चला है कार्यक्रम के अगले गाने का तो हम उठा रहे हैं हमारे अगले श्रोता का पत्र जिसे हमें लिख भेजा है मोजाहिदपुर, पूरबटोला, भागलपुर, बिहार से मोहम्मद ख़ालिद अंसारी, मोहम्मद ताहिर अंसारी, कादिर, मुन्ना खान मुन्ना, नुरूलहोदा, शब्बीर ज़फ़र, एम के नाज़ ने इनके साथ ही हमें पत्र लिखा है ज़फ़र अंसारी, शौकत अंसारी, मास्टर अतहर अंसारी ने आप सभी ने सुनना चाहा है शोर (1972) फिल्म का गाना जिसे गाया है लता मंगेशकर ने गीतकार हैं संतोष आनंद और संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने और गीत के बोल हैं -----

    सांग नंबर 5. मचा दिया शोर .... .

    पंकज - बिजनेस तो शुरू हो गया, लेकिन 100 मुर्गियां बेचना बड़ा ही कठिन काम था। इसी कठिनाई से अली को आइडिया आया कि वो क्यों न खुद के आउटलेट्स खोल दें। इस तरह अली ने खुद की कंपनी की मार्केटिंग शुरू की।

    कंपनी में हैं 8 हजार कर्मचारी

    इस बिजनेस को बहादुर ने अपने भाई सुल्तान अली के साथ मिलकर इन बुलंदियों तक पहुंचाया है। धीरे-धीरे दोनों भाइयों ने अपने बेटों जीशान बहादुर और फाहिम सुल्तान को भी इस बिजनेस में शामिल कर लिया। आज उनकी कंपनी में करीब 8 हजार कर्मचारी हैं और यह गिनती हर साल 10 फीसदी से बढ़ रही है। बहादुर अली की कंपनी सालाना 30 प्रतिशत की ग्रोथ के साथ बढ़ रही है। वहीं, कंपनी को वर्ष 2015 के लिए एशियन पोल्ट्री ब्रीडिंग पर्सनैलिटी का भी अवॉर्ड मिला है।

    गांव के लोगों को अपने साथ जोड़ा

    छोटे-बड़े एक्सपीरियंस सीखते-सीखते 1999 में पहला पोल्ट्री प्लांट शुरू किया गया। फिर 2006 में पहली सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन प्लांट की शुरुआत की। आज बहादुर अली के इंडियन ब्रायलर ग्रुप की कुक्कुट पालन क्षमता 50 लाख से अधिक है। इसके अलावा कंपनी के प्रोडक्ट में पैकेज्ड दूध, खाद्य तेल, मछली के फीड, सोयाबीन मील आदि शामिल हैं।

    आज इनका बिजनेस छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, विदर्भ और उड़ी में फैला हुआ है। लेकिन उनका काम ज्यादातर गांवों में है तो कर्मचारियों में भी 90 फीसदी गांव वाले हैंं।

    मुसीबतों का किया डटकर सामना... इनके पास शुरूआत में कई मुसीबतें सामने आई, मसलन सबसे पहले तो मार्केट में इन मुर्गियों को बेचना.. इसके लिए अली ने एक रणनीति बनाई। अली ने मार्केट में उतरने... से पहले मार्केट का पूरी तरह रिसर्च किया। उसके बाद रिटेल आउटलेट खोलने की योजना बनाई।...

    अंजली – मित्रों हमारे अगले श्रोता हैं रामलीला मैदान, सचेंडी से बाबा शिवानंद त्रिपाठी, शशि त्रिपाठी, मनू, तनू, सोनू, आलोक, शिवांश और रामानंद त्रिपाठी आप सभी ने सुनना चाहा है एजेंट विनोद (1977) फिल्म का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार ने गीतकार हैं रविन्द्र रावल और संगीत दिया है रामलक्ष्मण ने गीत के बोल हैं ----

    सांग नंबर 6. सबसे निराला रंगीला मतवाला ....

    पंकज – तो मित्रों इसी के साथ हमें आज का कार्यक्रम समाप्त करने की आज्ञा दीजिये अगले सप्ताह आज ही के दिन और समय पर हम एक बार फिर आपके सामने लेकर आएंगे कुछ नई और रोचक जानकारियां साथ में आपको सुनवाएँगे आपकी पसंद के फिल्मी गीत तबतक के लिये नमस्कार।

    अंजली - नमस्कार।

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