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बाजा स्वयं बजता 不敲自鳴
नीति कथा"बाजा स्वयं बजता"चीनी भाषा में"पू छ्याओ च मिंग"(bù qiāo zì míng) कहा जाता है। इसमें"पू"का अर्थ है नहीं,"छ्याओ"का अर्थ है बजना, जबकि"ची"का अर्थ है खुद या स्वयं और"मिंग"का अर्थ है पक्षी या कीड़े आदि का बोलना, यहां घंटी बजाने की आवाज है।
प्राचीन काल में मध्य चीन के हनान प्रांत के लोयांग शहर में एक बौद्ध मंदिर था। मंदिर के एक मकान के मेज़ पर जङ नामक पत्थर का एक वाद्ययंत्र रखा हुआ था। प्राचीन चीन का यह वाद्ययंत्र दूसरे चीज़ से उसे बजाने पर बजता था, लेकिन लोयांग मंदिर का यह प्रस्तर वाद्ययंत्र अकसर स्वयं बजता था और आवाज़ भी तेज़ होती थी, सुनने में लगता था जैसे कोई उसे जोर से बजाता हो।
मंदिर के इस मकान में एक भिक्षु रहता था, जिस दिन प्रस्तर वाद्ययंत्र जङ खुद बजने लगा, तो वह बड़ी आशंका और परेशानी में डूब गया। उसे समझ में नहीं आता था कि यह बाजा किस कारण अपने आप बजने लगा। कई दिन प्रस्तर वाद्य स्वयं बजते रहने पर भिक्षु को इतना भय हुआ था कि वह बीमार पड़ गया। वह समझता था कि ज़रूर कोई भूत इस पत्थर का बाजा बजाता है। उसे यह डर लगा कि यदि भूत जङ बजाने आता रहा , तो कहीं कोई अपशकुन न हो जाय ?!
भारी चिंता और डर के मारे भिक्षु बुरी तरह बीमार पड़ गया और उसका स्वास्थ्य दिनों दिन खराब होता गया। महीने के बाद उसकी बीमारी इतनी बड़ी कि वह पलंग से नहीं उठ सका। उसकी इस बीमारी का इलाज कराने के लिए दूसरों के पास भी कोई अच्छा तरीका नहीं सूझा।
भिक्षु का एक दोस्त था, जिसने किसी से सुना कि उसका दोस्त इन दिनों गंभीर रूप से बीमार पड़ा है और पलंग से भी नहीं उठ सकता, तो वह उसे देखने मंदिर आया।
दोस्त ने भिक्षु का हालचाल पूछने के दौरान कमरे की हालत भी देखी। मेज़ पर रखे जङ की ओर इशारा करते हुए भिक्षु ने अपने दोस्त को बताया कि यही चीज़ भूत को बुलाता है और वह खुद ब खुद बजता है और मेरी जान लेना चाहता है।
बातचीत के बाद भोजन का समय आया और मंदिर का घंटा बजने लगा। इसके साथ ही साथ जङ नाम का वह प्रस्तर वाद्ययंत्र भी बजने लगा। भय के मारे भिक्षु बिस्तर के भीतर छिपकर दुबक गया। जङ स्वः बजने की हालत देखकर दोस्त को इसका करण समझ आया। उसने भिक्षु को सांत्वना देते हुए कहा:"कल मुझे दावत दो, मैं आपकी बीमारी को दूर कर दूंगा।"
भिक्षु ने आधे विश्वास और आधे संदेह के साथ उसकी बात मान ली।
दूसरे दिन, दोस्त फिर मंदिर आया। वह अपने साथ लोहे का एक औजार रेती भी लाया। उसने भिक्षु को आंखें बंद करने को कहा। इसके बाद उसने रेती से जङ नाम के पत्थर वाद्ययंत्र पर कई बार हल्का रगड़ा, और फिर से भिक्षु के साथ गप्पें मारने लगा।
इस दिन के बाद वह पत्थर का बाजा फिर कभी स्वयं नहीं बजा। भिक्षु ने दोस्त से कारण पूछा। दोस्त ने जवाब में कहा:"आप कमरे में रखे जङ की ध्वनि की आवृत्ति मंदिर के घंटे की ध्वनि आवृत्ति के बराबर थी। इसलिए, जब कभी मंदिर का घंटा बजता था, तो आपके कमरे का यह जङ भी इसी आवृत्ति पर प्रतिध्वनि देता था। मैंने रेती से आपके इस जङ की ध्वनि की आवृत्ति को बदल दिया, इसलिए वह फिर कभी मंदिर के घंटा की आवाज प्रतिध्वनित नहीं कर सकता।"