कार्बन उत्सर्जन के स्तर में कमी लाने को प्रतिबद्ध चीन
जलवायु परिवर्तन से निपटने और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने के लिए चीन व्यापक प्रयास कर रहा है। हाल के दिनों में चीनी राष्ट्रपति व अन्य नेता विभिन्न मंचों से इस विश्वव्यापी समस्या से निपटने के लिए मिल-जुलकर काम करने का आह्वान करते रहे हैं। इसके साथ ही चीन की धरती पर कार्बन उत्सर्जन के निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने का वचन भी दिया गया है।
इस बीच चीन ने जलवायु परिवर्तन की समस्या को प्रभावी ढंग से हल करने की दिशा में एक और कदम उठाने का ऐलान किया है। चीनी पारिस्थितिकी और पर्यावरण मंत्रालय ने इस संबंध में दिशा निर्देश जारी किए हैं। जिनमें कहा गया है कि चीन कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण करने के लिए अभियान और तेज़ करेगा।
जैसा कि माना जाता है कि कोयला संचालित उद्योग कार्बन उत्सर्जन में बड़ी भूमिका निभाते हैं। जाहिर है कि कारखानों से निकलने वाली ज़हरीली गैसें हमारे वातावरण को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं। इसके मद्देनज़र चीन सरकार ने घोषणा की है कि वह विभिन्न क्षेत्रों, उद्योगों और उद्यमों को कोयला खपत को कम करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बेहतर ढंग से प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित करेगी।
सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस में यह भी कहा गया है कि भविष्य में चीन में तैयार होने वाली विकास योजनाओं व विशिष्ट प्रोजेक्टों में इस बात का पूरा खयाल रखा जाएगा कि वे वातावरण को कितना प्रभावित करती हैं।
इससे पहले नवंबर महीने में पर्यावरण मंत्रालय ने कोयला खनन परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन बढ़ाने की दिशा में एक अधिसूचना जारी की थी। जिसका मकसद भी चीन व वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को बचाने के लिए काम करना है।
चीन इस बात पर भी ज़ोर दे रहा है कि उच्च-कार्बन उत्सर्जन वाले उद्योगों को पर्यावरण पर होने वाले प्रभाव का पूरी तरह आकलन किए बिना संचालन की अनुमति नहीं दी जाएगी। ऐसा करने वाले उद्योगों और संबंधित विभागों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
कहा जा सकता है कि इन सब उपायों के माध्यम से चीन ने समूची दुनिया को एक अहम और मजबूत संकेत देने की कोशिश की है।
हालांकि जलवायु परिवर्तन के लिए अमेरिका जैसे विकसित देश काफी हद तक ज़िम्मेदार हैं। वर्तमान में जितने भी प्रभावशाली वैश्विक समूह हैं, उन सब में पश्चिमी ताकतों का मजबूत प्रतिनिधित्व है। ऐसे में वे बड़ी आसानी से अपनी जिम्मेदारी विकासशील व छोटे देशों पर डालते रहते हैं। पेरिस समझौते से अमेरिका का पीछे हट जाना और ऑस्ट्रेलिया द्वारा बार-बार आनाकानी किए जाने से जाहिर होता है कि ये राष्ट्र जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कितने गंभीर हैं।
(लेखक- अनिल पांडेय, पेइचिंग)